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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

Friday, September 07, 2007

"बस मैं ही!"
मय की लत लगाई थी
कि
कोई साकी बनेगा
आए थे मयखाने में
कि
कोई साथी बनेगा
कदम रखा जो मयखाने में
तो पाया
मय पीने-पिलाने वाले
बहुत थे
साकी बनने-बनाने वाले
बहुत थे
तरह-तरह की मय
तरह-तरह के साकी
न कोई बेहोश
न किसी को होश बाकी
इस पीने-पिलाने के चक्कर में
न मय ही रही
न मयखाना ही
बस "मैं" ही
सभी की "मैं" ही
रह गई बाकी!

Thursday, September 06, 2007

पुजारी
मूर्तियों का पुजारी रहा हूँ,
क्योंकि,
मूर्तियाँ बोलती तो नहीं
पर अपशब्द भी तो नहीं कहतीं
इनमें संवेदना का अभाव तो है,
पर ये छल भी तो नहीं करतीं,
इनमें जीवन नहीं
तो मौत का ख़ौफ भी नहीं
इसीलिये,
मूर्तियाँ ही मुझे लुभाती रहीं हैं
भाती रही हैं
यही तो
मेरी सच्ची साथी रहीं हैं!

Wednesday, September 05, 2007

हमें भूल चुका है तू भी!
हमें तो प्यार की गहराईयाँ ही लें डूबीं,
जग की क्या बात, हमें भूल चुका है तू भी ।
ओस की बूँद गिरी, शाख हरी हो बैठी,
भार इतना ही था, फिर आस मेरी क्यों टूटी ?
शाम हँसती रही, करती रही सबसे बातें,
चुप अँधेरे लिये, बस बैठे रहे हमीं यूँ ही ।
खो गया हूँ मैं तेरे तारों में नन्हा तारा,
तेरा आलोक ही इतना था, राह मुझे न सूझी ।
इक किनारा बने तुम, दूजा मेरी अभिलाषा,
पर सहारों की लहरें ही मुझे लें डूबीं ।

Monday, September 03, 2007

वादा पक्का मेरा !
तुझसे वादा निभे न निभे ज़िन्दगी,
मौत, तुझसे है वादा पक्का मेरा ।
दोस्त न हो, न हो कोई भी हमसफर,
कट जायेगा सफर रफ्ता-रफ्ता मेरा ।
न हँसो तुम हमार लिये, न सही,
तुमको खलता है क्यों पर हँसना मेरा ।
शाम ढलती रही, सुबह होती रही,
वक्त कटता रहा यूँ ही तन्हा मेरा ।
बात से बात यूँ ही निकलती गई,
तुमसे पहले तो न था रिश्ता मेरा ।

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