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"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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अपनी खुशी!
अपनी खुशी
ढूँढने
निकला था
जग में मैं
पर चहूँ और
दिखाई दिया
दुख ही दुख
कोई
भूख से दुखी
तो कोई
न खा सकने से दुखी
कोई
गरीबी से बेहाल
तो कोई
पैसा नहीं
सकता संभाल
कोई
किसी को
पाने की चाह में
कोई
किसी को पा कर
खोने की राह में
तो फिर
खुशी है कहाँ
ग़र दुखी है
सारा ही जहाँ
सोच में
पड़ गया मैं
पर
सोचने की
क्या ज़रूरत थी
जिस खुशी के लिये
भागता रहा
ता-ज़िंदगी
इधर-उधर
वो तो
अपने ही
भीतर थी बसी
बस उसे
थोड़ा सा
टटोलने की
थोड़ा सा
कुरेदने की
ज़रूरत थी !
बुरा मत मानना!
अगर मैं
ये कहूँ
कि मैं
किसी का
दोस्त नहीं
तो
बुरा मत मानना
उम्र के
इस पड़ाव पर
पहुँच कर
मुझे
ऐसा बनना ही पड़ा
ज़िंदगी के
टेढ़े-मेढ़े
ऊबड़-खाबड़
रास्तों ने
जो मुझे
सिखाया है
उससे शायद
यही
निचोड़ निकला है
कि
आज़ की दुनिया में
कोई किसी का नहीं
दोस्त होना तो
अलग बात है
इसलिये
मैंने भी
अपने बारे में ही
सोचना
शुरू कर दिया
अपनी ही
अपनी भावनाओं की
कद्र करने लग गया
नतीज़तन
मैं
अपने सिवा
किसी का
नहीं रहा
इसलिये किसी का
दोस्त भी
नहीं रहा
पर
इसके लिये तो
तुम
खुद जिम्मेदार हो
फिर मुझे दोष
क्यों देते हो!