गज़ल!
दोस्तों की दोस्ती तो देख चुके,
दुश्मनों से ज़फा निभायेगें ।
अश्कों ने साथ मेरा छोड़ दिया,
अब तो हँस के ही ग़म उठायेंगें ।
ज़ख्म खाने से तो गुरेज़ नहीं,
मरहम ग़र उस पे वो लगायेंगें ।
लाख रौशन करो अँधेरों को,
दिल मेरा फिर भी वो जलायेंगें ।
सब्र होगा तभी हसीनों को,
जब ज़नाजा मेरा उठायेंगें ।