मैं दर्द पिया करता हूँ !
मैं दर्द पिया करता हूँ, मर-मर के जिया करता हूँ,
फिर भी इस दुनिया को, लहू अपना दिया करता हूँ !
सब संगी-साथी छूटे, अपने थे जो वो रूठे,
मन में जो बातें आयें, मैं खुद से किया करता हूँ !
कोई वक्त न ऐसा आये, तुझको न याद दिलाये,
अब तो मैं खुदा के बदले, तेरा नाम लिया करता हूँ !
रुसवा तुझको नहीं करना, चाहे पड़ जाये मुझे मरना,
कोई जान न पाये दिल की, ले होंठ सिया करता हूँ !
मौसम है बदला-बदला, बदली-बदली हैं निगाहें,
पा लूँ मैं निशाँ जहाँ तेरा, वो राह लिया करता हूँ !
3 Comments:
दर्द-औ-गम को चाहे, अपने होठो से पी लो,
नैन बता ही देंगे चाहे, होठों को सीं लो ।
बहुत बढिया गजल है।बधाई स्वीकारें।
चड्ढा जी मजा आया पढ़ के,बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
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