"गज़ल"
मुश्किल जीना अब होता जा रहा है,
सांस भी घुट-घुट के हमको आ रहा है ।
जानवर को मिल जाता है ऐशो-आराम,
इंसा कूड़े से भी चुन कर खा रहा है ।
बस गईं चारों तरफ घनी बस्तियाँ,
तन्हा खुद को हर शख्स पा रहा है ।
साफ गोई तो उसे मंजूर न थी,
पाठ मुझको झूठ का सिखला रहा है ।
एहसानात चंद क्या उसने कर दिये,
बेवजह वो जुल्म मुझपर ढा रहा है ।
उदासी पहले ही कुछ कम न थी,
गीत दर्द के कोई क्यों गा रहा है ।
0 Comments:
Post a Comment
<< Home