"उपेक्षा"
दो शब्दों की
बात तो थी
वो भी
न कही गई तुमसे
तुम्हारी
यही उपेक्षा
न सही गई मुझसे
फिर भी
जाने क्यों
मैं अपने-तुम्हारे बीच
एक मौन तरंग सी
लहराती हुई पाता हूँ
और कहीं पर
तुम्हे
अपने करीब पाता हूँ
ये मौन ही तो है
जिसने
हमको बाँध कर
रखा है अब तक -
मौन भावनाएँ,
मौन नयन,
मौन शब्द -
इशारों-इशारों में
बहुत कुछ कह जाते हैं
शायद कहीं
मेरे-तुम्हारे अंदर
अभी भी
कुछ बचा है
जो आपस में
जुड़ा है
इसलिये तुम
कुछ न कहो
तो
मुझे दुःख होता है
पर मेरा मन
तुम्हारी उपेक्षा पा
चुपचाप रोता है
कि
शायद मेरा मौन
तुम्हे भी
कभी समझ आ जाये
और हम
और करीब आ जायें
और ये
मौन की दीवार टूट जाये
1 Comments:
Bahut hi bhavpoorn sundar likhte hain aap...
Aise hi likhte rahen...shubhkamnayen.
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