क्षणिकाएँ
(१)
खूब कहा, तुमने जो लिख कर कहा,
दुनिया को पर तेरा भी हिसाब चाहिए !
तकरीरें देने वाले तो देखे हैं बहुत,
गुप-चुप करतूतों का पर जवाब चाहिए !!
(२)
संस्कारों की दुहाई देने वालो, अपना गिरेबाँ भी झांका करो,
उन्ही मापदंडों की परिधि में, खुद को भी तो आंका करो !
तुम्हारे ही पढाए असूलों पर, तुम्हारा अंदर-बाहर तुलता है,
दुनिया की आँखें तो बंद नहीं, तुम भी आँखें खोल कर ताका करो !!